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लेखनी कहानी -03-May-2022 शोख अदाऐं

शोख अदाओं के खंजर से कैसे दिल को संभाला है 

न जाने क्या सोचकर इश्क का रोग दिल ने पाला है 

जबसे चखा है इन तीखे नयनों का खारा सा नमक 
तेरी कसम गले से उतरता नहीं कोई भी निवाला है 

न जाने कब तू मेरे ख्वाबों में आ जाये, यही सोचकर
घर की हर खिड़की और दरवाजा मैंने खोल डाला है

तन्हाइयों को बांहों में समेटे सोने की कोशिश करते हैं
दुश्मन नींद ने भी आज न जाने कब का बैर निकाला है 

लचकते बदन की महक ने जिंदा रखा है अब तक "हरि"
वरना तो इस बेदर्द जमाने ने कब का हमें मार डाला है 

हरिशंकर गोयल "हरि"
3.5.22 

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7 Comments

Swati chourasia

09-May-2022 07:06 PM

Very beautiful 👌

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Pamela

04-May-2022 01:04 AM

बहुत उम्दा

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Haaya meer

03-May-2022 08:52 PM

Nice

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